राधा जी के साथ कृष्ण का नाम ना आये, ये तो हो ही नहीं सकता है।
सुदामा जी और कृष्ण की दोस्ती तो जगजाहिर है।
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लेकिन क्या आपको पता है कि सुदामा जी के श्राप के कारण राधा और कृष्ण एक-दूसर से बिछड़ गये थे।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लोगों के जहन में आज भी ये सवाल कचोटता है कि राधा और कृष्ण का प्रेम कभी शादी के बंधन में क्यूँ नहीं बंधे…
राधा जी और कृष्ण की प्रेम कहानी तो क्या ही कहने। क्योंकि इसे जब-जब याद किया जाता है एक अलग ही प्रकार की अनुभूति आपके दिल और दिमाग में घर कर जाती है। कृष्ण और राधा को याद करने पर सिर्फ आनंद की अनुभूति होती है। कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी आज भी उतनी प्रासंगिक है जितनी की पहली थी। ये एक अलग ही प्रकार का पवित्र प्रेम है।
सुदामा जी ने दिया था राधा जी को श्राप –
सुदामा जी को कौन नहीं जानता। वो कृष्ण जी के परम मित्र के रुप में जाने जाते है। लेकिन ये भी सच है कि राधा जी को कृष्ण से विरह का श्राप किसी और से नहीं बल्कि सुदामा जी से मिला था। और सुदामा जी के इसी श्राप के कारण उन्हें 11 साल के लिये वृन्दावन को छोड़कर जाना पड़ा था।
एक बार राधा जी की अनुपस्थिति में कृष्म विरजा नाम की गोपी के साथ विहार कर रहे थे और तभी वहां राधा जी आ पहुंची और उन्होनें ना केवल उस गोपी को ब्लिक विरजा जी को भी अपमानित किया। इसी गुस्से के कारण राधा जी ने विरजा गोपी को धरती पर एक गरीब ब्राह्मण बनकर दुख भोगने का भी श्राप दिया। लेकिन ये सब सुदामा जी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और इसीलिये उन्होनों राधा जी को कृष्ण से बरसों तक विरह का श्राप दे दिया।
श्रीकृष्ण ने क्यों नहीं किया राधा से विवाह –
आज भी इस बात पर बहुत ही ज्यादा विचार-विमर्श किया जाता है कि श्रीकृष्ण ने राधा जी से विवाह क्यूँ नहीं किया। कृष्ण जी के राधा जी को हमेशा से ही पूजा जाता है। अंतिम समय में राधा जी अपने आप को ना रोक पायी और उन्होने कृष्ण जी से पूछा कि उन्होनें उनको अपनी अर्धागिनी क्यूँ नहीं बनाया। इस प्रशन पर राधा जी काफी क्रोधित हो गयी थी और उन्होनें पूछा कि क्यूँ कृष्ण ने उन्हें अपनी अर्धागिनी क्यूँ नहीं बनाया। इस सवाल का कोई उत्तर ना देते हुये कृष्ण वहां से चल दिये।
क्या कहा राधा ने कृष्ण से –
कृष्ण के वृंदावन छोडने के बाद से ही राधा जी के बारे में बहुत कम मिलता है। राधा जी और कृष्णा जी जब एक दूसरे से आखिरी बार मिले थे तो राधा जी ने कृष्ण से कहा कि भले ही वो उनसे दूर जा रहे है, लेकिन हृदय से वो हमेशा साथ है। और इसके बाद कृष्ण जी मथुरा गये और कंस के साथ बाकी के राक्षसों को भी मार कर जनकल्याण किया। उन्होनें कभी भी राधा जी के वियोग को अपने कर्तव्य के आडे नहीं आने दिया।
वे प्रजा की रक्षा के लिये सदैव तत्पर रहे है। और इसी कारण उन्हें द्वारकाधीश के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद राधा जी की जिदंगी ने भी काफी अलग मोड़ ले लिया था । और उसके बाद राधा जी का जीवन भी बहुत ही अलग सा हो गया था और राधा जी की शादी हो गयी थी एक यादव से।
और अंत में –
सबसे बड़ी बात ये है कि दांपत्य जीवन सभी जिम्मेदारियां राधा जी पूरी तरह से निभाई । लेकिन फिर भी उनका मन कभी भी कृष्ण जी से अलग नहीं हुआ। वो सदैव उनके हित में सोचती रहती थी।